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पारिचय:-
गिलोय यानी अमृता धरती पर सभी औषधियों में सबसे श्रेष्ठ मानी जाती है।इसको गुडूची व Tinospora Cordifolia के नाम से भी जाना जाता है। यह लता के रूप में वृक्षो पर चढी रहती है। नीम के पेड़ पर चढी हुई गिलोय सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है प्रायः सभी प्रान्तों में यह आसानी से मिल जाती है। इसके पत्ते हृदय के आकार के समान होते है। इसके पत्ते को तोडने पर शहद के समान पीब सा निकलता है जो स्वाद में बहुत तीखा होता है। इसका तना मोटा होता है। इसकी विशिष्ट पहचान यह है कि इसकी बाह्य छाल हल्के भूरे रंग की कागज जैसी परतों में होती है। इसको छिलने पर अंदर से हरे रंग की चिकनी व रस से भरी हुई कांड होती है।


इसके अन्दर पाये जाने वाले मुख्य घटक:-

इसके पल्प या कांड में स्टार्च लगभग 1से 2 प्रतिशत व इसके अतिरिक्त अनेक कडवे जैव संघटक पाये जाते है।
इसके अन्दर तिक्त ग्लूकोसाइड,गिलोइमिन,कार्डिओल ,कार्डियोसाइड व टिनोस्पोरिडीन नामक जैव सक्रिय पाये जाते है
गिलोय में गिलोईन नामक एक कडवा ग्लूकोसाइड तथा टिनोस्पोरिन, पोमेरीन अम्ल पाये जाते है।
इसमें एक वाष्पशील तैल होता है एवम वसा , एल्कोहल तथा कईं प्रकार के वसा अम्ल होते है।


औषधीय प्रयोग व इसके लाभ:-
यह नेत्र रोगो में बहुत लाभकारी है इसके 10मि.ली. स्वरस में शहद व सेंधा नमक 1-1ग्राम मिलाकर अच्छी प्रकार से मिक्स कर नेत्रों पर अंजन करने से आपके नेत्र सम्बन्धी रोग नष्ठ होते है।
यह गठिया रोग में बहुत लाभकारी होती है । 3 से 5ग्राम गिलोय के चूर्ण को दूध के साथ दिन में 2-3 बार लेने से आपको आराम आता है।
बुखार होने पर इसके क्वाथ को दिन 2-3बार 3से 5 ग्राम एक गिलास में अच्छे से उबालकर छानकर पीने से बुखार जल्दी ही नष्ट हो जाता है।
यह आपके त्वचा सम्बन्धी रोगो को नष्ठ करता है।इसके 10-20मि.ली. स्वरस को दिन में 2-3 बार कुछ माह तक सेवन करने से आपके त्वचा सम्बन्धी रोग दूर होते है।
आपके शरीर मे कहीं पर भी सूजन हो तो गिलोय की 100-150 ग्राम बेल को कूटकर पानी मे अच्छे से उबालकर उसके पानी से सिकाई करने से सूजन उतर जाती है व दर्द में भी आराम आता है।

जानिए गिलोय के अद्भुत फायदों के बारे में....


मोटापा आधुनिक जीवन शैली की देन माना जाता है। यह रोग अधिकतर उन लोगो मे देखा जाता है शारीरिक श्रम नही करते है। आधुनिक समय मे जीवन को आसान बनाने वाली विज्ञान एवं तकनीक से उपजी भौतिक सुख सुविधाओं, असन्तुलित खान-पान एवं आचार -विचार के कारण व्यक्ति आज मोटापे से ग्रसित होते जा रहे है। हर उम्र के व्यक्तियों में मोटापा देखने को मिलता है।अत्यधिक मोटापा होने की समस्या आजकल विश्व की बहुत बड़ी समस्या बन गयी है। अधिकतर शहरी लोग इसकी चपेट में आ रहे है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार 25से 30 वर्षो के अन्तर्गत मोटापे से ग्रसित लोगो की सँख्या दो गुणी हो गयी है। यह बहुत से रोगों का कारण भी है।मोटापे का अर्थ शरीर मे अत्यधिक वसा का संचय तथा वजन में अत्यधिक वृद्धि होना है यह जीवन काल को कम कर अनेक स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं को भी जन्म देता है। इससे शरीर के विभिन्न संस्थान जैसे हृदय, श्वसन, उत्सर्जन संस्थान आदि पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है।तथा विभिन्न रोग जैसे हृदय रोग,मधुमेह, उच्चरक्त चाप, गठिया आदि उत्त्पन्न हो जाते है।

लक्षण:-
थोड़ी सी मेहनत करने पर ही हांफने लगना।
शरीर मे कमजोरी व आलस्य रहना।
अधिक पसीना व अधिक भूख लगना।
शरीर से दुर्गन्ध आना, शरीर मे थुलथुलापन होना व स्फूर्ति न होना।

कारण:-

अधिक चर्बीयुक्त वाले भोजन का प्रयोग, अधिक मीठा खाने से मोटापा बढ़ता है।
शारीरिक व्यायाम  व शारीरिक परिश्रम न करना।
बार-बार खाने व अत्यधिक भोजन करने से भी मोटापा बढ़ता है।
हार्मोन की गडबडी जैसे थाइरॉइड ग्रन्थि के स्त्राव में असंतुलन होने से भी मोटापा बढ़ जाता है।



उपचार:-
मोटापे को नियन्त्रित करने में योगाभ्यास अत्यन्त प्रभावकारी है। अतः कम से कम 1या 2 घन्टे का योगाभ्यास अवश्य करें।
योगासन के अंतर्गत ताड़ासन, कटिचक्रासन, भुजंगासन, पादहस्तासन, पश्चिमोत्तानासन, हलासन,उत्तनापादासन सर्वांगासन धनुरासन व सूर्यनमस्कार आदि अभ्यासों को शामिल करें।
अधिक लाभ के लिये कुंजल क्रिया व सनखप्रखसालन आदि क्रियाओ का अभ्यास किसी योग्य योग शिक्षक से सीखकर करना चाहिये।
प्राणयाम में भस्त्रिका व कपालभाति  आदि जा अभ्यास करें।
 सप्ताह में एक उपवास जरूर करें।


अपथ्य:-
चर्बीयुक्त पदार्थो जा सेवन जैसे चावल , दूध, मिठाइयां,दूध से बने पदार्थ, रिफाइन्ड आदि ।
माँसाहार व मदिरा आदि के सेवन से बचे।
दिन में अधिक न सोयें व बाज़ारी चीजो का सेवन न करें।

पथ्य:-
कच्ची सब्जिया व सलाद का प्रयोग नियमित करें।
फल व सब्जियों का सूप पीने की आदत डालें।
ताज़ा व सुपाच्य भोजन करें।

बेहद आसान है मोटापा कम करना, जानिए लक्षण कारण व उपचार




शरीर को मजबूत व जवान रखने के लिए हितकारी सर्वांगासन:-

सर्वांगासन विधि लाभ व सावधानियां

विधि:-

  • सबसे पहले अपने आसन पर पीठ के बल सीधे लेट जाइए। पैर आपस मे मिले हुए और हाथ बगल में शरीर से सटे हुए, हथेलियाँ भूमि की ओर रहेंगी।
  • शरीर तनाव मे नही रहना चाहिये, बल्कि शरीर को शिथिलता(Relaxation) की अवस्था में रहना चाहिये।
  • अब धीरे-धीरे अपने दोनों पैरों को एक साथ 30डिग्री तक उठाकर कुछ सेकण्ड उसी स्थिति में रोककर क्रमशः 60 और 90 डिग्री ऊँचा उठाइये।
  • अपनी हथेलियों से भूमि को दबाकर रखें जिससे आपको पैर उठाने मे आसानी हो।
  • पैरों को 90डिग्री तक उठाने के पश्चात अब अपनी पीठ को ऊपर उठाइये। पीठ को ऊपर उठाते हुए अपनी दोनों कोहनियों को मोड़कर पीठ को हथेलियों से सहारा दीजिये।
  • पीठ को इतना ऊपर उठाइये की आपकी ठुड्ड़ी कण्ठकूप में लग जाये और पूरा शरीर समकोण की स्थिति में आ जाये अपने हाथों की हथेलिया को जितना कन्धों की करते जायेंगे शरीर उतना ही सीधा रहेगा।
  • आँखे बन्द रखें या जो बन्द नही कर सकते है वह दृष्टि को अपने पैरों के अँगूठे पर टिकाये।
  • वापस आते हुए पैरों को अपने सिर की तरफ मोड़े, परन्तु घुटने सीधे रहने चाहिये, फिर दोनों हथेलियां भूमि पर टिकाते हुए भूमि पर इनकी पकड़ बनाये।
  • अब धीरे-धीरे अपनी पीठ को भूमि पर टिकाते हुए पहले पैरों को 90डिग्री ले जाये, फिर थोड़ा रुककर 60डिग्री फिर 30डिग्री पर ले जाते हुए पैरों को जमीन पर टिका दे और शवासन में थोड़ा आराम करें।


लाभ:-
  • इस आसन का अभ्यास नियमित करने से आप शारीरिक रूप सुदृढ़ होते है व आपका चेहरा चमकदार बनता है क्योंकि आपके शरीर मे रक्त का प्रवाह चेहरे व सिर जी ओर होने लगता है ।जिससे चेहरे की झुर्रियां मिटती है।
  • यह आसन आपकी थाइरॉइड ग्रन्थि को सक्रिय व स्वस्थ रखता है इस ग्रन्थि के स्वस्थ रहने से पूरा शरीर स्वस्थ रहता है।
  • दमे के रोगियों को इस आसन को करने से विशेष लाभ मिलता है।
  • यह आसन हमारी पीठ,गर्दन व कन्धों को मजबूती प्रदान करता है, तथा मोटापे को दूर करता है।
  • महिलाओ व पुरुषों में होने वाले यौन सम्बन्धी समस्यओं को ठीक करता है ।
  • पाचन क्रिया को मजबूत कर पेट की समस्याओं को दूर करता है।
  • बालो के झडने की समस्या व नज़र की कमजोरी को भी दूर करता है।
  • हृदय व नेत्र सम्बन्धी रोगों में इस असन को करने से बचना चाहिये।
  • मधुमेह व बवासीर जैसी समस्याओं से पीडित व्यक्ति इस आसन को करने से लाभ ले सकते है।
  • यह तनाव व अनिद्रा जैसी समस्यओं को भी दूर करता है।
  • मूत्र या पैशाब में जलन होने पर इस आसन को करने से रोगी को आराम आता है।

सावधानियां:-
  •  मासिक धर्म काल मे महिलाओ को यह आसन नहीं करना चाहिये।
  • पहली बार मे ही इस आसन का अभ्यास नही करना चाहिये । पहले धीर-धीरे उत्तनापादासन को सीखना चाहिये, उसके बाद इस आसन का अभ्यास करना चाहिये।
  • सर्वाइकल व साईटिका से पीडित व्यक्ति को इस आसन का अभ्यास करने से बचना चाहिये
  • पीठ व गर्दन के दर्द में इस आसन को नही करना चाहिये।
  • ह्रदय, उच्चरक्तचाप व नेत्र सम्बन्धी कोई समस्या होने पर यह आसन नही करना चाहिये।

सर्वांगासन विधि लाभ व सावधानियां



भुजंगासन की विधि , लाभ और सावधानियां:-
विधि:-
  • भुजंगासन करने के लिये सबसे पहले पेट के बल लेट जायें और अपने पैरो पँजे व एड़ियां आपस मे मिलाकर रखें।
  • इसके बाद अपने हाथों की हथेलियों को अपने कन्धों के ठीक नीचे भूमि पर टिका दें और आपकी भुजा अपने सीने के पास रखें।
  • तत्पश्चात गहरी श्वास भरते हुए धीरे-धीरे पहले अपने सिर  फिर अपनी ठोडी, सीना व नाभि तक का भाग उठाने का प्रयास करना चाहिये।
  • इस स्थिति में पहुँचने पर अपने शरीर को स्थिर रखे तथा अपनी दृष्टि आसमान की ओर रखे व दोनों कन्धों के सिरे पीछे की ओर खीचकर रखे जिससे आपका सीने वाला भाग बाहर की ओर तना रहे।
  • अब इसी स्थिति में ऊपर ही कम से कम 5सेकण्ड रोकने का प्रयास करें अभ्यास अच्छा होने पर ऊपर रुकने का समय बढ़ाते जायें।
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लाभ:-
  • भुजंगासन को नियमित करने वाले लोग मोटापे से दूर रहते है यह आपकी पेट व पीठ की चर्बी को कम कर शरीर को अच्छा आकार (Shape) देता है।
  • कमर व कूल्हों के दर्द में इस आसन को विधिवत करने से पूर्णतया लाभ होता है।
  • थाइरॉइड व सर्वाइकल व अस्थमाकी समस्याओं में में यह आसन रामबाण का कार्य करता है।
  • इसको नियमित करने से आपके कन्धे ,भुजा , कलाई ,पीठ व छाती की मांसपेशी मजबूत बनती है।
  • यह आसन आपके चेहरे की सुन्दरता बढाता है क्योंकि जब आप इस आसन को करते है तो आप अपने सिर को ऊपर की खींचकर रखते है तो इस स्थिति में आपका गला व चेहरा भी खिंचा रहता है जिससे चेहरे पर खिंचाव व दबाव होने से रक्त का प्रवाह सुधरता है अतः यह चेहरे की सुन्दरता भी बढाता है।
  • महिलाओं में स्तनों का ठीक से विकास न होना या स्तनों की अतिवृद्धि की समस्या में भी यह आसन उपयोगी माना गया है ।
  • मूत्र व धातू रोगो से सम्बन्धित समस्याओं में भी इस आसन को करने से लाभ होता है ।
  • कब्ज व गैस सम्बन्धी समस्याओं में भी इस आसन का अभ्यास नियमित करने से लाभ होता है ।

सावधानियां:-
  • अल्सर व हर्निया जैसी समस्या में इस आसन को नही करना चाहिये।
  • स्लिप डिस्क जैसी समस्याओं में इस आसन को सावधानीपूर्वक किसी अच्छे योग शिक्षक की देख रेख में करना उचित है।
  • महिलाओ को मासिकधर्म व गर्भवस्था के समय इस आसन को नही करना चाहिये ।
आवश्यक निर्देश:-
इस आसन को करने के तुरन्त बाद सामने झुकने वाले आसन पवनमुक्तासन, शशांकासन, इत्यादि में से कोई एक आसन करना चाहिए।

भुजंगासन की विधि , लाभ और सावधानियां

विधि:-
  •  उत्तानपादासन करने के लिये समतल भूमि पर अपना आसन बिछाकर पीठ के बल जमीन सीधे लेट जाये ।
  • सीधे लेटकर अपने दोनों हाथों को अपनी जंघाओं की ठीक बराबर में रखकर अपनी हथेलियों को भूमि से सटाकर रखे।
  • आपके पैर के पंजे व एड़ियाँ आपस मे मिलाये और पँजे बाहर की ओर ताने।
  • अब आप गहरी लम्बी श्वास अपने नाक से अन्दर लेते हुए धीरे-धीरे अपने दोनों पैरों को एक साथ ऊपर की उठाएं और 30डिग्री पर 5सेकण्ड ऊपर की ही रोककर रखें। और कम से कम 5 आवर्ति करें यह शुरुआती अभ्यास के लिये है।
  • अपने श्वास को 5सेकण्ड जब तक आप पैर ऊपर रखें रोककर रखें आवश्यकता पड़ने पर श्वास ले भी सकते है
  • अभ्यास अच्छा होने पर अपने दोनों पैरों को फिर 60डिग्री पर रोकने का अभ्यास बनाना चाहिए।यह भी कम से कम 5सेकण्ड से शुरू करें।
  • इसकी आवर्ति को भी कम से कम पाँच बार दोहराएं अभ्यास होने पर ऊपर रुकने का समय व आवर्ति दोनों बढ़ानी चाहिए।

लाभ:-
इस आसन को नियमित करने से मोटापा दूर होकर पेट की मांसपेशियां मजबूत होती है तथा आपकी पाचन क्रिया भी अच्छी होती हैं।
जिन व्यक्तियों को बार-बार नाभि या धरण अपनी जगह हटने की समस्या रहती है वह इस आसन का अभ्यास करके इस समस्या से निजात पा सकता है।
कब्ज और हर्निया जैसे रोगों में भी यह लाभकारी आसन है।
पेट के नीचे वाले हिस्से की मजबूती के साथ-साथ यह आपके जंघाओं, कमर व कूल्हों को भी मजबूत बनाता है।
कमर के दर्द से पीडित व्यक्ति भी इस आसन का अभ्यास कर सकते है किन्तु यह सावधानीपूर्वक किसी अच्छे योग शिक्षक के सानिध्य में ही करना चाहिये।



सावधानियां:-
  • स्लिप डिस्क(Slip disc), उच्चरक्तचाप,अल्सर व पेट की सर्जरी वाले व्यक्तियों को इस आसन का अभ्यास नही करना चाहिये।
  • गर्भवती महिलाओं को इस आसन का अभ्यास नही करना चाहिये।
  • महिलाओ को मासिकधर्म के समय इस आसन को करने से परहेज करना चाहिये।
  • सियाटिका दर्द से पीडित व्यक्ति को इस आसन का अभ्यास करने से बचना चाहिये यदि करें तो किसी अच्छे योग शिक्षक की सलाह लेकर करना चाहिये।

आवश्यक निर्देश:-कोई भी योगासन का अभ्यास करते समय अपनी आँखें बन्द व मन को एकाग्र कर उस आसन से प्रभावी शरीर के अंगो पर केन्द्रित करने से आसन अधिक लाभकारी होता है।

उत्तानापादासन करने की विधि ,लाभ और सावधानियां





योगदर्शन(योगसूत्र) का उद्भव :-
आज के समय मे योग शब्द से कौन परिचित नही है हमारे भारतवर्ष में ही नही बल्कि पूरे विश्वभर में योग का प्रचार-प्रसार हो रहा है कुछ ही वर्षो पहले इस विद्या को जानने वाले लोग बहुत ही न्यून थे भारत के अलावा इस योग विद्या को अन्य कोई देश नही जानता था योग का उद्भव वेदों से हुआ ऐसा माना जाता है क्योंकि समस्त विद्या का ज्ञान वेदों से जन्म लेता दिखाई देता है वेदों में छिपे योग विद्या के गूढ़ रहस्यों को समझाने के लिये  महर्षि पतंजलि जैसे ऋषियों ने अपने शास्त्र में सूत्र रूप में पिरोया है योग को सामान्य भाषा मे यदि देखा जाये तो यह दो रूपों में प्रचलित है
1).व्यायात्मक योग जिसमे भिन्न-भिन्न प्रकार के योगासन , व्यायाम, बन्ध, मुद्रा आदि क्रियाएं की जाती है यह योग का स्थूल रूप कहा जा सकता है।
 2). दूसरा क्रियात्मक योग या क्रियायोग के नाम से जाना जाता है इसको जानने वाले साधक आज के समय में विरले ही है सही मायने में क्रियायोग ही योग की आत्मा है  क्रियायोग को छोड़कर अन्य योग जिसको हम व्यायात्मक योग कह रहे है शरीर को बाहरी मजबूती प्रदान करते है या ये कहे कि स्थूल शरीर के लिये ही उपयोगी है शरीर की आन्तरिक शुद्धि करने का कार्य क्रियायोग साधना द्वारा ही सम्भव है मनुष्य अपने जीवन मे दुःखो से कैसे छुटकारा पाये अर्थात सुख को कैसे प्राप्त करे इसके लिये हमारे ऋषियों ने शास्त्रों व ग्रन्थों की रचना की जिसमे योगदर्शन योगसूत्र नामक शास्त्र सबसे अधिक प्रचलित हुआ जिसके रचियता  महर्षि पतंजलि जी है अन्य सभी योग ग्रन्थों का मूल भी यही है इसको योगदर्शन के नाम से जाना जाता है जिसके भाष्यकार महर्षि वेद व्यास जी है।


योगदर्शन(योगसूत्र) का परिचय:-
योगदर्शन वह महान योग शास्त्र है जिसके अन्दर सभी योग निहित है अर्थात सभी योग ग्रन्थों का मूल भी यही है क्योंकि यह योग पर आधारित सबसे प्राचीन व प्रामाणिक शास्त्रो में से एक है
महर्षि पतंजलि जी ने अपने योगदर्शन ग्रन्थ में अपनी बात को सूत्रों के रूप में कहा है उन्होंने वेद में संकलित इस रहस्यमयी योग विद्या को मनुष्यों के कल्याण हेतु इस ग्रन्थ की रचना की है।
योगदर्शन में योगसूत्रों को सरल भाषा मे समझाने के लिये महर्षि वेद व्यास जी इसकी व्याख्या की है।
योगदर्शन में महर्षि जी ने 195सूत्रों की रचना की है।
इसके क्रमशः चार पाद समाधिपाद(51सूत्र) ,साधनपाद(55सूत्र), विभूति पाद(55सूत्र) और कैवल्य पाद(34सूत्र)है

उद्देश्य:- 
महर्षि पतंजलि जी  का योगदर्शन नामक ग्रन्थ की रचना करने का एक ही मुख्य उद्देश्य दुःखो से निवृत्ति, सुख की प्राप्ति, अर्थात मोक्ष को प्राप्त करना है इसलिये जो योग साधक महर्षि पतंजलि जी के द्वारा अपने योगसूत्रों में बताये गये आठ नियमों का पालन करता है वह निश्चित ही सुख-दुख के बंधन से मुक्ति पा सकता है अर्थात वह समाधि प्राप्त कर सकता है महर्षि पतंजलि जी के द्वारा बताये गए आठ सिद्धान्त यम, नियम, आसन ,प्राणायाम, प्रत्याहार ,धारणा, ध्यान व समाधि है इसे अष्टांग योग के नाम से भी जानते है अतः योग के इन आठ अंगो का पालन करने वाला योगसाधक मोक्ष व ईश्वरत्व का प्राप्त कर जन्म-मरण के बन्धन से मुक्त हो सकता है इसी को मुक्ति कहा है यही योग का मुख्य उद्देश्य भी है।

महर्षि पतंजलि कृत योग सूत्र -योग और अध्यात्म का महाग्रंथ





माईग्रेन(आधासीसी) या आधे सिर का दर्द:-
:-जिस प्रकार मनुष्यों ने  आधुनिकता के जगत में अपनी सुविधा के लिए बहुत सारे संसाधनो का निर्माण कर लिया है जिससे मनुष्यो ने शारीरिक व्यायाम कम कर अपने समय का उचित उपयोग न करने , ईधर-उधर घूमने , देर रात तक जगने, लेट उठने आदि आदतों को अपनी दैनिक दिनचर्या में शामिल कर लिया है जिस कारण से मनुष्यों ने अपने जीवन अनेक रोगों को विकसित कर दिया है उनमें से एक व्याधि(रोग) आजकल लोगो में बहुत अधिक सँख्या में देखने को मिलता है इससे भारतवर्ष ही नही बल्कि पूरा विश्व पीडित है। सामान्यतः लोग इसको समझ नही पा रहे है और तरह-तरह की पेन किलर टेबलेट्स खाते रहते है जिससे उनके शरीर मे कोई दूसरी बीमारी पनप जाती है आधुनिक मेडिकल साइन्स भी इसके मूल कारण को जानने में सक्षम नही है सामान्य रूप से अगर देखा जाये तो माईग्रेन या आधे सिर में दर्द होना कोई बीमारी नही है यह किसी अन्य बीमारी का उपलक्षण मात्र है।अर्थात यह किसी अन्य असाध्य रोग को हमारे शरीर में जगह दे रही होती है ।





जाने क्या है लक्षण:-
माईग्रेन अर्थात आधसीसी का दर्द सामान्य सिर दर्द की तुलना में बहुत तीव्र होता है यह सिर में कोई कील या कांटा चुभने के समान प्रहार करता है।
यह पूरे सिर में न होकर आधे सिर व आँख तक अपना प्रभाव दिखाता है इसमें रोगी अपने आपको एकान्त में ले जाने का प्रयास करता है।
इस अवस्था मे पीड़ित व्यक्ति को तेज़ रोशनी व किसी भी तरह की कोई आवाज़ से भी पीड़ा परेशानी होने लगती है। जिसको फोटोफोबिया व फोनोफोबिया की समस्या भी कहते है।
इसका प्रभाव 2घन्टे से लेकर 2-4दिन तक भी बना रहता है यह लगातार नही होता है यह कुछ-कुछ दिनों के अन्तराल पर होता रहता है।
इसमे व्यक्ति को जी मिचलाना, उल्टी जैसा मन होना,हृदय प्रदेश में पीड़ा, सिर व गर्दन की मांसपेशियों मे अकडन, कडवा पित्त निकलना व मूत्र निष्कासन में दिक्कत होना आदि लक्षण दिखाई देते है।




कारण:-
अधिकतर रोगो की तरह यह भी पेट से सम्बन्धित रोग है अतः पेट साफ रखें यह शरीर मे पित्त बढ़ने के कारण भी हो सकता है इसको पित्तज सिरोवेदना भी कहते है।
कुछ लोगो को गले से ऊपर के हिस्से में कफ बढ़ जाने के कारण ऑक्सिजन का प्रवाह ठीक से मस्तिष्क की ओर नही हो पाता है जिससे माईग्रेन की समस्या उतपन्न हो जाती है।
पेट मे गैस बनना ,ज्यादा समय तक खाली पेट रहना ,अधिक तैलीय , मिर्च मसालो वाले खाद्य पदार्थ खाना इस रोग का एक मुख्य कारण है।
मानसिक व भावनात्मक तनाव , नींद ठीक से ले पाना खान-पान का समय न होना अधिक बोलना भी सिर दर्द का बहुत बड़ा कारण है। जिससे सिर व मस्तिष्क में रक्त पहुंचाने वाली धमनियां बाधित होती है

यौगिक उपचार:-
माईग्रेन में मुख्यतः सिर की नस नाड़ियो को सबल बनाने के लिये भुजंगासन, पश्चिमोत्तानासन, वक्रासन, मत्स्यासन, व सूर्यनमस्कार आदि आसनो का अभ्यास किसी उचित योग शिक्षक के सानिध्य में सीखकर करना चाहिये।
गर्दन व कन्धों के शूक्ष्म व्यायाम करें।










प्राणायाम:-
प्राणायाम में मुख्य रूप से अनुलोम-विलोम का कम से कम 5-10 मिनट का अभ्यास करें।
शीतली प्राणायाम व ओंकार की पवित्र ध्वनि का उच्चारण करने से भी लाभ मिलेगा। यदि कफ़ बढा हुआ है तो शीतली प्राणायाम न करे।
सिर दर्द यदि तनाव के कारण है तो शवासन का अभ्यास भी जरूर करें।




आयुर्वेदिक व घरेलु उपचार:-
मेधावटी की एक-एक गोली सुबह-शाम गुनगुने पानी के साथ सेवन करें।
चार बादाम व एक अखरोट रात को पानी मे भिगोकर पीसकर  सुबह खाली पेट दूध के साथ सेवन करने से लाभ होगा।
नाक में गाय का घी या बादाम का तेल डालने से भी सिर दर्द ठीक होता है।
रात को सोने से पहले सिर की मालिश व पैरो को साफ कर उनपर नारियल के तैल की मालिश करने से जल्दी ही आराम आने लगता है।

क्या है माइग्रेन की समस्या व उसके लक्षण , कारण व उपचार | MyYogaSutra.in